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*ख्वाजाकड़क शाह अब्दाल का कडा में 730 साल से मनाया जा रहा है उर्स*

*ख्वाजाकड़क शाह अब्दाल का कडा में 730 साल से मनाया जा रहा है उर्स*

*आर पी यादव*
9 tv news

कौशाम्बी : जिले का कड़ा धाम पूरे विश्व में मशहूर है। यह बात अलग है कि समय के साथ अतीत के कुछ पन्नों में ही सिमट कर रह गया है। ऐतिहासिकता के साथ-साथ धार्मिक संतों, सूफियों की स्थली होने के कारण आज भी कोने-कोने से लोग यहां आते हैं।

कड़ा में संत मलूकदास, मां शीतला के अलावा विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा कड़क शाह अब्दाल का मजार लाखों लोगों के श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। हर साल यहां सालाना उर्स के अवसर पर विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग आते हैं और मजार पर अपनी श्रद्धा के फूल चढ़ाकर दुआ मांगते हैं। यह उर्स 730वर्ष से लगातार चला आ रहा है। मजार के दक्षिण में भट्ठी व इमली का पेड़ आज भी उनकी जिंदा करामात के रूप में मौजूद है।

ख्वाजा कड़क शाह अब्दाल रह की पैदाइश व उनकी जीवनी के बारे में इतिहासकारों ने लिखा है कि ख्वाजा कड़क शाह अब्दाल के दादा सैयद मोहम्मद हैदर जो असफहान के बादशाह थे। उस समय बहुत से बुजुर्गो ने कहा कि आप की औलादों में एक बुजुर्ग होगा और उसकी चारों तरफ प्रसिद्धि होगी। जब बादशाह सैयद मोहम्मद हैदर का देहावसान हो गया तो उनके पुत्र सैयद हसन को बादशाहत मिली लेकिन राजपाट में उनका मन नहीं लगा। कुछ दिनों बाद सैयद हसन राजपाट छोड़कर ईश्वर की आराधना में लग गए और देश छोड़कर चल दिए। भ्रमण के दौरान उनकी तीन औलादें हुई, जिसमें ख्वाजा कड़क, सैयद जैनुल आबदीन तथा सैयद मोहम्मद हुए। ख्वाजा कड़क शाह पैदाइशी धार्मिक मिजाज के थे। पैदा होने के बाद जब रमजान का महीना आया तो उन्होंने पूरे माह दिन में मां का दूध नहीं पीया। उनका यह हाल था कि कुरआन शरीफ खुद ही पढ़कर सुनाने लगे। इस पर उन्हें पढ़ाना-लिखाना छोड़ दिया गया। बहरहाल सैयद हसन असफहान से घूमते-घूमते बुखारा, काबुल, मुल्तान, दिल्ली, आगरा होते हुए कड़ा आए। यहां पर उनको जगह पसंद आई और यहीं ठहर गए। कड़ा बाजार में मकान बनाया और ईश्वर की आराधना करने लगे।

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