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*गोंडा में सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया मुसीबतों से मुक्ति के लिए नामध्वनि और जीवात्मा के उद्धार के लिए नामदान*

*गोंडा में सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया मुसीबतों से मुक्ति के लिए नामध्वनि और जीवात्मा के उद्धार के लिए नामदान*

*कोई भी व्यक्ति मुसीबत में जयगुरुदेव नाम बोलेगा, तो मदद करने वाला कोई ना कोई सहारा बन जाएगा*

गोंडा (उ.प्र) सन्त जब आते हैं, नाम को जगाते हैं और प्रभु से जोड़ देते हैं। फिर उस नाम से जब उसको पुकारते हैं तो वह देखता, मदद करता है। इस समय जो जयगुरुदेव नाम है, प्रभु से जुड़ा हुआ नाम है। कहीं भी आप मुसीबत में पड़ जाओ तो जयगुरुदेव नाम बोलना आपकी मदद होगी, आप जयगुरुदेव नाम का प्रचार करो। कोई भी मुसीबत में पड़ जाए और जयगुरुदेव नाम बोलेगा तो मदद करने वाला कोई न कोई सहारा बन जाएगा। यह जो घर-घर में बीमारी लड़ाई झगड़ा टेंशन रुपया पैसा में बरकत नहीं हो रही है, कोई न कोई समस्या तकलीफ बनी ही रहती है, बहु अपनी तरफ, बेटा अपनी तरफ, सास अपनी तरफ, भाई अपनी तरफ खींच रहा है। यह खींचातानी खत्म हो, उसके लिए आप सबको एक साथ बैठाकर एक घंटा सुबह शाम जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बुलवाओ। शाकाहारी, नशामुक्त रह करके जो जयगुरुदेव नाम को बोलेगा उसको जल्दी फायदा होगा। मान लो अगर बुराइयों वाला है, तो कुछ दिन के बाद बुराइयों की तरफ से उसका मन हट जाएगा। आप करके देख लेना फायदा आपको दिखाई पड़ने लग जाएगा। कैसे बोलना है ? जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयजय गुरुदेव।

*मौत के आखिरी समय कान में जयगुरुदेव नाम बोलने पर यमदूत हट जाएंगे*

मरते समय भी कितने ही लोगों ने परीक्षा लिया। मरने वाले ने बताया कि यमराज के दूत हट गए बाबा साहब, दाढ़ी वाले महात्मा, सफेद दाढ़ी वाले फकीर आ गए। लोगों ने तरह-तरह का अनुभव बताया, जो देखे हुए थे वह तो साफ-साफ बताए कि जयगुरुदेव बाबा आ गए। आप भी देख लेना परीक्षा लेकर कौन आता है। कोई न कोई बचाने वाला आएगा तब आपको पता चल जाएगा।
मुसीबत तकलीफ में तो बोलना ही रहेगा इसलिए इसकी आदत डाल लो। नहीं तो फिर वही होगा जैसे कहा गया कि –
कोटि-कोटि मुनि जतन कराहीं।
अंत नाम मुख आवत नाहीं ।।

मतलब आखिरी वक्त पर नाम याद नहीं आता है। अगर याद कर लिया जाए तो जिसका नाम है वह प्रभु मददगार हो जाए।

*कुछ तुम भी करो, गुरु महाराज ज्यादा करेंगे*

सकल पदारथ है जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं।

जो कर्म नहीं करता उसको कुछ नहीं मिलता है, न दुनिया की दौलत न आध्यात्मिक दौलत मिलती है। लेकिन जो कर्म करते हैं उनको मिलता है, जो साधना करते हैं उनको मिलता है जो थोड़े बहुत हैं। ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो नहीं करते हैं, वह तो देव-देव आलसी पुकारा कहते हैं। हमको समरथ गुरु मिल गए, गुरु तो पार करेंगे ही। अरे भाई गुरु पार तो करेंगे, कर सकते हैं, लेकिन जब तुम भी कुछ करोगे तब तो गुरु महाराज करेंगे। कुछ करो ही नहीं और कहोगे गुरु महाराज जी सब करेंगे तो गुरु महाराज क्यों करेंगे ! कोई कर्जा खाए हैं आपका ? इसलिए कुछ तुम भी करो तो गुरु महाराज ज्यादा करेंगे, तब पर हो पाओगे।

*कर्तव्य और परमार्थ में क्या अंतर है*

रोज की सेवा का संतों ने उपाय निकाला – आश्रमों पर श्रमदान सेवा । लेकिन रोज सेवा के लिए आश्रमों पर कोई जा नहीं सकता है । घर में भी सेवा है जैसे बाल-बच्चों की देखरेख कर लो, दरवाजे पर कोई आ जाए भूखा उसको खिला दो, प्यासे को पानी पिला दो। कोई दु:खी है उसके दु:ख को दूर कर दो यह भी एक सेवा है। बाल बच्चों की सेवा परमार्थ में नहीं जुड़ती है, यह तो आपका कर्तव्य है, फर्ज है। अपने लड़के की शादी, अपने लड़के को पढ़ाना, कोई बीमार हो गया उसका इलाज तो कराना ही कराना है। दूसरों के लिए जो कर दिया जाता है वह परमार्थ में जुड़ जाता है। इसके अलावा सबसे बड़ी सेवा है जीवों पर दया करो, जीवों को बचाओ। जितने भी जीव हैं चाहे पशु-पक्षी हों, कीड़े-मकोड़े हों उनकी जान को बचाओ और आदमी की जान को बचाओ। मानव हत्या जितना बड़ा कोई पाप नहीं है और मानव की रक्षा जितना बड़ा पुण्य कोई नहीं है। इनकी रक्षा कैसे होगी ? जब तक खाने वाले लोग, कमाई करने वाले दुकानदार रहेंगे, इनको मारने-काटने वाले रहेंगे तब तक उनकी रक्षा कैसे होगी?

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