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*वक्त गुरु परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने खोला इस शरीर को चलाने वाली शक्ति का रहस्य।*

*वक्त गुरु परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने खोला इस शरीर को चलाने वाली शक्ति का रहस्य।*

*जब जीवात्मा जग जाती है, फिर उस प्रभु के मिलने में देर नहीं लगती- सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

(मैनपुरी)। विश्व विख्यात निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वक्त गुरु परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने मैनपुरी में दिए सतसंग संदेश में बताया कि यह जीवात्मा जिसे सुरत भी कहा गया है परमात्मा की अंश है। वही जीवात्मा हम सब के अंदर है और इस शरीर को चलाती है, इसके निकल जाने के बाद शरीर धड़ाम से गिर जाता है। जैसे ही समय पूरा होगा यह शरीर धड़ाम से गिर जाएगा। फिर इसी शरीर को जिसको हम संवारते हैं, अच्छा कपड़ा पहनाते हैं, अच्छे घर में रहते हैं, अच्छी गाड़ी घोड़ा पर चलते हैं, इसी शरीर को लोग मिट्टी कहने लगते हैं। जीवात्मा के निकल जाने के बाद चाहे राजा का शरीर हो, महाराजा का शरीर हो, पंडित, मुल्ला और पुजारी का शरीर हो, चाहे प्रधानमंत्री- राष्ट्रपति का शरीर हो, सभी के शरीर को लोग मिट्टी कहते हैं और लोग कोठी बंगले से निकाल कर बाहर कर देते हैं।

*शरीर किसकी शक्ति से चलता है ?*

शरीर जीवात्मा की शक्ति से चलता है। शरीर के विकास के लिए जीवात्मा की जरूरत होती है। मां के पेट में सबसे पहले पिंड बनता है, जब पिंड 5 माह 10 दिन का होता है तब उसमें जीवात्मा डाल दी जाती है, उसी की ताकत से शरीर के सभी अंग बनते हैं और जब 9 महीने के बाद मां के शरीर से बाहर निकलता है, तो उसके विकास के लिए जीवात्मा ही ताकत देती है।

*मृत्यु लोक क्या है?*

स्वांस से ही आप जीते हो, हम सब लोग इस मृत्यु लोक में निवास करते हैं, सबको शरीर छोड़ना पड़ता है। इस मृत्यु लोक का नियम ही यही है जो पेड़ फलता है, वह झड़ता है। जो पैदा होता है, वह मरता है। चाहे कृष्ण जैसे भगवान हों, चाहे राम जैसे भगवान हों, जो इस शरीर से चले गए वह उसी शरीर में वापस नहीं आए।

*वास्तविक देवी देवताओं से मिलने का सच्चा रास्ता*

“घट में है सूझत नहीं, लानत ऐसी जिन्द।
तुलसी जा संसार को, भयो मोतियाबिंद।।”
इसी मनुष्य शरीर में ही तीसरी आंख (शिव नेत्र) से उपरी लोकों का दर्शन किया जा सकता है। सभी संतो महापुरुषों ने मनुष्य शरीर में ही देवी देवताओं को प्राप्त किया है। मनुष्य शरीर में ही देवी देवता मिलते हैं, ये सब मनुष्य शरीर के घट(ऊपरी लोकों में जाने का रास्ता) में ही निवास करते हैं। लेकिन कर्मों के आ जाने से यह रास्ता बंद हो गया।

*सच्चा गुरु कौन है?*

सच्चा गुरु नर के रूप में हरी ही हैं,
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है –
“श्री गुरु पद नख, मणि गण ज्योति, सुमित दिव्य, दृष्टि हिय होती। “
जो पैर के अंगूठे को देखते ही दिव्य दृष्टि खोल दें, वही वास्तव में गुरु होते हैं। जब तीसरी आँख खुल जाती है, तब संसार का भय खत्म हो जाता है, जन्म मरण से छुटकारा मिल जाता है। घट में उजाला प्रकट करने वाले का ही नाम है, गुरु। गुरु में *रु* का मतलब *प्रकाश* और *गु* का मतलब *अंधकार*।
जो बाहरी आंख बंद करवा कर अंदर में अंधेरा दूर कर, प्रकाश कर दे, वही सच्चा गुरु समर्थ गुरु हुआ करता है। जहां प्रभु निवास करते हैं, वहां उजाला ही उजाला है।
“परम प्रकाश रूप दिन राती,
नहीं कछु चाहिए दिया घृत बाती।”
वहां रोशनी ही रोशनी है, दिया चिराग की आवश्यकता ही नहीं है तो जो ऐसे अंधेरे से उजाले में ले जाए, वही सच्चा गुरु है।

*शरीर का राजा कौन है ?*

मन ही शरीर का राजा है, मन को गुरु की तरफ नहीं लगाया, गुरु के आदेश की तरफ नहीं लगाया, गुरु के प्रेम में नहीं लगाया तो मन दूसरी तरफ लग गया। शरीर का राजा मन ही शरीर को चलाता है, मन ही खिलाता है, मन ही सुलाता है, मन ही गाली दिलवाता है, मार दिलवाता है, मन ही सब करता है।

*गुरु भक्ति क्या है?*

गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति है। इसलिए मनमुख ना होकर गुरमुखता लाओ।

*गुरुमुखता किसको कहते हैं ?*

“जो गुरु कहे करो तुम सोई।
मन के कहे करो मत सोई।। “
मन के कहने से मान- सम्मान के चक्कर में मत आओ। गुरु भक्ति ही बड़ी चीज होती है। गुरु महाराज ने कहा गुरु भक्ति पहले करो, पीछे और उपाय। गुरु भक्ति करोगे तो यह मन जो मोह में लगा है, काम में लगा है, उससे यह हटेगा, इसको ही गुरुमुखता कहते हैं। तो गुरु भक्ति यदि करनी है, तो मनमुखता को छोड़ो और गुरुमुखता को लाओ।

*कभी भी, कहीं से भी, जीव कल्याणकारी सतसंग सुनें*

परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज के सतसंग प्रतिदिन प्रातः 8:40 से 9:15 तक साधना भक्ति टीवी चैनल पर प्रसारित होते हैं और संस्था के अधिकृत यूट्यूब चैनल jaigurudevukm पर कभी भी देख सुन सकते हैं।

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