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*चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद यह मनुष्य शरीर मिला है इसलिए अपना असली काम बना लो – बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*अबकी बार अगर पार होने का, मुक्ति और मोक्ष पाने का दांव नहीं लगा, तो फिर चौरासी में जाना पड़ेगा*

*चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद यह मनुष्य शरीर मिला है इसलिए अपना असली काम बना लो – बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*अबकी बार अगर पार होने का, मुक्ति और मोक्ष पाने का दांव नहीं लगा, तो फिर चौरासी में जाना पड़ेगा*

उज्जैन म प्र परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने कहा कि चौरासी लाख योनियॉं हैं। उसी में उलट-पलट (एक योनि से दूसरी योनि में) करते रहते हैं। गीता में भी लिखा है – “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा, न्यन्यानि संयाति नवानि देही।” तो आत्मा शरीर को छोड़ कर दूसरे शरीर में चली जाती है, दूसरा देह मिल जाता है। कर्मों के अनुसार चौरासी (लाख योनियों) में जन्म लेना पड़ता है। मनुष्य जब अपने धर्म-कर्म से अलग हो जाता है तो उसको चौरासी में जाना पड़ता है, सज़ा मिल जाती है। पेड़ बना दिए गए, तो पचास साल सौ साल तक खड़े हैं। पक्षी बना दिए गए, तो उड़ते ही रहो। घोड़ा-गधा बना दिए गए, तो चलते ही रहो। घोड़े को तो फिर भी दाना खिलाते हैं, हाथी को फिर भी खिलाते हैं लेकिन गधे को ऐसे ही छोड़ देते हैं। सामान भी लाद देते है, अब वो घास खाया तो खाया नहीं तो भूखा रह जाता है बेचारा। तो यह सजा पाने की योनि है।

*चौरासी में बहुत तकलीफ झेलनी पड़ती है*

कबीर दास जी ने कहा है “कबीर गुरु की भक्ति बिन राजा गधा होय। माटी लादै कुम्हार का, घास न डारै कोय।।” कर्म जब ख़राब हो जाते हैं, भजन, भाव-भक्ति नहीं हो पाती, संग दोष (खराब का साथ) आ जाता है तो गधा की योनि मिलती है। बहुत स्पष्ट कबीर साहब ने समझाया है – “कबीर गुरु की भक्ति बिन नारी कूकरी होय, गली-गली भूँकत फिरै टूक न डारै कोय।” कुतिया गली-गली घूमती रहती है, भटकती रहती है, जिसके दरवाज़े पर पहुँचती है वही डॉंटता फटकारता भगाता है, छोटे बच्चे मार भी देते हैं। यह भी कहा “कबीर गुरु की भक्ति बिन बेटी बिच्छू होय, वंश देत ही अपना जीवन खोय।” बिच्छू सौ-सौ बच्चे एक साथ देती है, लेकिन एक बार बच्चा देने के बाद कुछ दिन में मर जाती है। वह अपने बच्चे को छोड़ना नहीं चाहती, अपनी पीठ पर हमेशा लादी रहती है। जब वह बड़े होते हैं और उनको भूख लगती है तो अब खाए तो क्या खाए? वह बिच्छू उतारती नहीं है, वह उतरते नहीं हैं। आदत बन गई पीठ पर सवार रहने की। तो वह उसी (बिच्छू) का खाल मांस सब खा जाते हैं और कुछ दिन के बाद बिच्छू खत्म हो जाती है। इसलिए कहा गया भाव भक्ति प्रेम भजन चाहे स्त्री हो या पुरुष हो ज़रूरी है।

*जब तक शरीर में ताक़त है तब तक आप अपना काम बना लो*

चौरासी लाख योनियों में जन्मना-मरना पड़ता है। चाहे मनुष्य का बच्चा पैदा हो चाहे पशु-पक्षी कीड़े-मकोड़े का बच्चा पैदा हो, वह रोता है। जन्मते समय और मरते समय बड़ी तकलीफ़ होती है। सोचो चौरासी लाख योनियॉं हैं, चौरासी लाख बार जन्मना और मरना पड़ता है। अब लख-चौरासी में भटकने के बाद, गाय और बैल की योनि के बाद, फिर नौ महीने मॉं के पेट में लटकने के बाद यह मनुष्य शरीर मिलता है। तो यह बड़े भाग्य से मिला। इसीलिए कहा है “लख चौरासी भटक कर पग में अटक्यो आए, अब की पासा ना पड़ा तो फिर चौरासी जाए”। अब अगर एक पैर आगे बढ़ा दो तो किसी योनि में नहीं जाना पड़े और एकदम से निकल जाओ अपने घर, अपने देश, अपने मालिक के पास। अबकी बार अगर दांव न लगा पार होने, मुक्ति और मोक्ष का तो फिर चौरासी में आना पड़ेगा और फिर कब नंबर लगे कोई पता नहीं। इसलिए जब तक शरीर में ताक़त है तब तक आप अपना काम बना लो (वक्त गुरु से रास्ता लेकर प्रभु के पास पहुँच जाओ)।

*बीमारी व तकलीफों में आराम देने वाला नाम “जयगुरुदेव”*
किसी भी बीमारी, दुःख, तकलीफ, मानसिक टेंशन में शाकाहारी, सदाचारी, नशामुक्त रहते हुए *जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव* की ध्वनि रोज सुबह-शाम बोलिए व परिवार वालों को बोलवाइए और फायदा देखिए ।

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