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*डीएमके का फिर हिंदी विरोधी राजनीतिक राग, सहयोगि दलों की फिर चुप्पी*

*पूरी तरह अंग्रेजी स्थापित करने की मंशा रखने वालों को कारारा जवाब देना होगा : शंकर ठक्कर*

*डीएमके का फिर हिंदी विरोधी राजनीतिक राग, सहयोगि दलों की फिर चुप्पी*

*पूरी तरह अंग्रेजी स्थापित करने की मंशा रखने वालों को कारारा जवाब देना होगा : शंकर ठक्कर*

कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय मंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया एक बार फिर तमिलनाडू में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम सरकार द्वारा हिंदी विरोध के माध्यम से तमिलनाडु सहित कई राज्यों में हिंदी विरोध की आग लगाने का प्रयास किया जा रहा है।इसमें चिंता की बात यह भी है कि बात-बात पर संविधान की बात करने और तमिलनाडु में गठबंधन के साथी व कांग्रेस जैसा राष्ट्रीय दल और इंडी गठबंधन के अन्य दल भी इसे मौन समर्थन दे रहे हैं। हर बार ऐसा ही होता है कि जब दक्षिण में इनके नेता विरोध करते हैं तो हिंदी पट्टी के नेता इसका विरोध करने की बजाए चुप्पी साध लेते हैं। लालू, मुलायम आदि के कथित समाजवादी दल जो लोहिया जी को आदर्श मानते थे और हिंदी के पक्ष में खड़े होते थे, वे भी अब हिंदी विरोध को मौन समर्थन देने लगे हैं। कहीं दूर-दूर तक किसी का आवाज नहीं निकल रही। ऐसा लगता है कि देश-हित की किसी बात से इनका कोई सरोकार नहीं।

यह केवल हिंदी का विरोध नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं को परस्पर, इन्हें लड़ाकर, इन्हें मिटाकर, केवल अंग्रेजी को बनाए रखने का खेल है।

भारत को जोड़ने वाली भाषा, हिंदी जो उत्तर भारत में भी किसी क्षेत्र विशेष की नहीं बल्कि सबकी अपनी है, सबसे मिलकर बनी है। भारतीय भाषाओं की मुट्ठी है। उसे खत्म करने के लिए अब शैतान स्टालिन का एक और षड्यंत्र। हिंदी को स्थानीय बोली भषाओं से लड़ाओ।

*शंकर ठक्कर ने आगे कहा स्टालिन और उसकी पार्टी के निरंतर हिंदी के खिलाफ विषवमन करने पर भी इंडी गठबंधन के सभी राष्ट्रीय और उत्तर भारत के दल इस तरह ख़ामोशी ओढ़ कर बैठे हैं, जैसे उनका हिंदी से कोई लेना-देना ही नहीं। स्पष्ट रूप से अपनी भाषाओं के विरुद्ध रचे जा रहे हैं इन षडयंत्रों के खिलाफ विरुद्ध हमें ही संघर्ष करना होगा। इसके लिए हमें सभी भाषाओं के बीच समन्वय सहयोग के साथ भारतीय भाषाओं को लड़ा कर उन्हें खत्म करते हुए पूरे देश में, पूरी तरह अंग्रेजी स्थापित करने की मंशा रखने वालों को जवाब देना होगा।*

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