*भाषा के नाम पर राजकीय रोटी सेकने में विफल रहने के बाद अब रुपए ₹ के चिह्न का अपमान कर विवाद करने वाले स्टालिन पर कड़ी कार्यवाही करें सरकार : शंकर ठक्कर*

*भाषा के नाम पर राजकीय रोटी सेकने में विफल रहने के बाद अब रुपए ₹ के चिह्न का अपमान कर विवाद करने वाले स्टालिन पर कड़ी कार्यवाही करें सरकार : शंकर ठक्कर*
*रुपए के चिह्न पर पूर्व और वर्तमान मुख्यमंत्री, बाप – बेटा एक दूसरे के खिलाफ।*
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय मंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया करुणानिधि से लेकर स्टालिन तक तमिलनाडु की राजनीति में भाषा के नाम पर अपनी राजकीय रोटी सेक कर राजनीति में सत्ता पाने के लिए नेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। राष्ट्रीय एकता की बात तो बहुत दूर, बाप को भी नीचा दिखा सकते हैं। यह तो सर्वविदित है कि तमिलनाडु में पेरियार से लेकर स्टालिन तक उत्तर – दक्षिण, द्रविड़ – आर्य और तमिल – संस्कृत या तमिल – हिंदी के नाम पर तमिलनाडु के लोगों को भड़काकर, उनके हितों को क्षति पहुंच कर सत्ता – सुख पाते रहे हैं। अब जबकि नई शिक्षा नीति में तमिलनाडु की बात छोड़िए देश के किसी भी हिस्से में कोई भी भाषा पढ़ना अनिवार्य नहीं किया गया है। केवल इतना कहा गया है कि संविधान की अष्टम अनुसूची में दी गई भाषाओं में से कोई दो भारतीय भाषाएं और अंग्रेजी या अन्य कोई भाषा पढ़नी है। कोई विद्यार्थी चाहे तो वह तमिल के साथ कन्नड़ या अन्य कोई भारतीय भाषा भी ले सकता है। लेकिन फिर भी इंडी गठबंधन के घटक दल द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन हिंदी विरोध के नाम पर अपनी वोट बैंक साधने का काम कर रहे हैं।
अब तमिलनाडु में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की स्थिति कमज़ोर है। स्टालिन का स्वास्थ्य भी बहुत ठीक नहीं है। लगता है वे अगला चुनाव जीतकर, देश के अन्य खानदानी दलों की तरह राजतांत्रिक रूप से अपने बेटे की ताजपोशी करने की फिराक में हैं।
तमिलनाडु में अब भाषा की राजनीति की पहले जैसी स्थिति नहीं रह गई है। अब वहां हिंदी विरोध के नाम पर पहले जैसा ध्रुवीकरण भी नहीं हो पा रहा है। इसके चलते स्टालिन ने एक और दांव खेल दिया है, जो न केवल हास्यास्पद है बल्कि राज्य को अलगाववाद की तरफ ले जाने की कोशिश दिखती है, उन्होंने अचानक रुपए के प्रतीक चिन्ह ₹ को अस्वीकार कर अलग से प्रतीक चिह्न बनाया और राज्य के बजट में उसका प्रयोग करना शुरू कर दिया।उनका तर्क है कि यह तो हिंदी की लिपि देवनागरी से जुड़ा है जो उन्हें स्वीकार नहीं।तो पिछले 15 साल से वो सो रहे थे जो इन्हें यह क्यों नहीं दिखाई दिया?
यहाँ सोचने वाली बात यह है भी कि आखिर वे किसका विरोध कर रहे हैं ? रुपए का वर्तमान चिह्न किसी सरकार ने नहीं बनाया। 2010 में जब देश में यूपीए की सरकार थी, जो यूपीए थोड़े फेरबदल के साथ, अब इंडिया गठबंधन के रूप में मौजूद है और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम उसका हिस्सा है। उसके शासनकाल में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रुपए के लिए प्रतीक चिह्न बनाने के लिए देशवासियों से एक प्रतियोगिता के माध्यम से चिह्न के प्रारूप मांगे गए थे।
डी. उदय कुमार, 2010 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) का विद्यार्थी था जो द्रविड़ मुनेत्र कड़गम दल के ही एक पूर्व विधायक का बेटा है।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी में डिजाइन विभाग में अपनी नई नौकरी शुरू करने से बस एक या दो दिन दूर थे, जब उन्होंने भारतीय रुपये के प्रतीक को डिजाइन करने के लिए एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती। उनके डिजाइन, जिसमें देवनागरी और रोमन लिपियों के तत्व शामिल थे, उसे भारतीय मुद्रा का प्रतिनिधित्व करने के लिए सैकड़ों प्रविष्टियों में से चुना गया था। डी उदय कुमार जो कि तमिलनाडु राज्य का रहने वाला था। तब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री के पिता करुणानिधि ने न केवल डी. उदय कुमार का सम्मान किया था, बल्कि उन्हें तमिलनाडु का गौरव भी बताया था।
लगता है कि 15 साल के बाद अब बेटा गहरी नींद से जगा तो उसको यह ध्यान आया कि उसका बाप गलत था, या यूं कहे कि वह तमिल विरोधी और हिंदी समर्थक था। उन्होंने आनन – फानन में तमिल की लिपि में एक नया प्रतीक चिह्न बनाया और अपने बजट में उसे घुसा दिया। उन्हें पता था कि इस पर बवाल तो होगा ही, और जब बवाल होगा तो वे हिंदी विरोधी और तमिल समर्थक महान नेता के तौर पर उभर कर आएंगे, और एक बार फिर तमिलनाडु की जनता का राज्य की स्थिति से ध्यान बंटा कर सत्ता पा जाएंगे।
यह तो कोई सामान्य बुद्धि रखने वाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि इस प्रकार अपने ही प्रदेश के व्यक्ति द्वारा, अपने ही दल के पूर्व विधायक के बेटे द्वारा बनाया गया चिह्न, जिसे उनके मुख्यमंत्री पिता ने तमिलनाडु का सम्मान माना था, अचानक उसके विरोध और उसको अस्वीकार करने की बात क्यों और कैसे उठी है ? तमिलनाडु के लोग इतने नासमझ हों,ऐसी तो बात नहीं है। खैर, चुनाव में स्टालिन को इसका कितना लाभ मिलेगा यह तो वक्त बताएगा।
जिस प्रकार द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के कार्यकर्ता तमिलनाडु में हिंदी में लिखे बोर्डों पर कालिख पोत रहे हैं, वे चाहें तो रुपए के नोटों पर भी कलिख पोत कर इस चिह्न का विरोध कर सकते हैं। तब वह नोट किसी कागज के टुकड़े से अधिक नहीं होगा।
अब बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कोई राज्य सरकार, संघ सरकार द्वारा या भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित रुपए के चिह्न को अपने राज्य में बदल सकती है ? सीधी सा जवाब है कि यह संभव नहीं है। अगर ऐसा होने लगा तो हर राज्य रुपए के अलग चिह्न बना लेगा, कल को अलग से मुद्रा भी छपने लगेगी। तब देश में व्यापार – व्यवसाय अर्थव्यवस्था कैसी चलेगी ? संविधान के नाम पर हो हल्ला करने वाले इस पर चुप हैं, हालांकि मुद्रा संबंधी कार्य संघ के कार्य क्षेत्र में आता है जिसका दायित्व भारतीय रिजर्व बैंक पर है। इस संबंध में विधि में अलग से कुछ नहीं कहा गया है।बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है, जिसका लाभ उठाकर स्टालिन राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं। हालांकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि यह चलने वाला नहीं है। उनका उद्देश्य तो इस बहाने लोगों को उकसा कर राजनीतिक लाभ लेना है। अब केंद्र सरकार इसमें क्या करे। इस संबंध में अधिक जानकारी तो विधि विशेषज्ञ ही दे सकेंगे। लेकिन यह कोई बहुत कठिन काम भी नहीं है। सरकार यदि इसे एक राष्ट्रीय चिह्न घोषित कर दे तो बात खत्म हो जाएगी। लेकिन इस बहाने तमिल की लिपि और देवनागरी लिपि के बीच संग्राम खड़ा करके वे अपने राजनीतिक मंसूबे पूरे करने का प्रयास तो कर ही सकते हैं।
इसमें सर्वाधिक चिंता उत्पन्न करने की बात यह है कि द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और उनकी सरकार लगातार अलगाववाद की राजिसह पर चल रही है, जिसके लिए वह अपने प्रदेश में तमिल और अंग्रेजी के अलावा किसी भारतीय भाषा को पढ़ाने का विकल्प समाप्त करना चाहती है। देश में सबसे अधिक संख्या वाले धर्म को खुलेआम गालियां देती है और उसे मिटाने का अभियान चलाती है। उत्तर ,- दक्षिण और आर्य – द्रविड़ के नाम पर तो घृणा फैलाने का उसका पुराना खेल चलता ही रहता है। यह सब राष्ट्र विरोधी है।
यहाँ इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि कांग्रेस के नेतृत्व में जिस यूपीए सरकार के समय में रुपए का यह चिह्न बनाया गया और स्वीकार किया गया, राजनीतिक लाभ के लिए, वह भी इस चिह्न के विरोध पर चुप्पी साधे है। इस अलगाववाद पर विपक्ष का मौन, राष्ट्रीय एकता के लिए घातक है। यह राजनीति का विद्रुप चेहरा है। अब यह खेल एक रोचक मोड़ पर है।
*शंकर ठक्कर ने आगे कहा भारत के रुपए के चिन्ह का अपमान करने वाले स्टालिन के खिलाफ केंद्र सरकार को तुरंत कार्यवाही करनी चाहिए और आगे कोई भी राज्य सरकार ऐसी हिम्मत ना करें ऐसा सबक सिखाना चाहिए।*