*सर्वोच्च न्यायालय ने मुफ्त राशन और पैसों की योजनाओं पर उठाया सवाल*

*सर्वोच्च न्यायालय ने मुफ्त राशन और पैसों की योजनाओं पर उठाया सवाल*
*करदाता की अनुमति के बिना मुफ्त की रेवड़ी बांटना बंद किया जाए : शंकर ठक्कर*
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय मंत्री एवं अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया सरकारों द्वारा चुनाव के वक्त मुफ्त की रेवड़ियां बांटकर मतदाताओं को लुभाया जाता है लेकिन इसका बोझ सरकारी तिजोरियों पर पढ़ने से आखिरकार करदाता को ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है इसलिए हमने सरकार से कई बार यह निवेदन किया है की कोई भी सरकार करदाता की अनुमति के बिना मुक्त की कोई भी योजना लागू न करें।
अब सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकारों की ओर से मुफ्त में दी जानी वाली सुविधाओं पर बड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने फ्रीबीज की घोषणाओं करने की प्रथा की निंदा की है। न्यायालय ने कहा कि लोग काम करने के इच्छुक नहीं हैं, क्योंकि उन्हें मुफ्त में राशन और पैसा मिल रहा है। यह टिप्पणी जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने की। बेंच शहरी क्षेत्रों में बेघर व्यक्तियों के आश्रय के अधिकार से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी। जस्टिस गवई ने कहा कि दुर्भाग्य से, इन मुफ्त सुविधाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है। उन्हें बिना कोई काम किए राशि मिल रही है।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने पीठ को बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में है, जिसके तहत शहरी क्षेत्रों में बेघरों के लिए आश्रय की व्यवस्था समेत विभिन्न मुद्दों का समाधान किया जाएगा। पीठ ने अटॉर्नी जनरल को केंद्र सरकार से यह पूछने का निर्देश दिया कि शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन कितने समय में लागू किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई छह सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी।
वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसएन ढींगरा द्वारा बीजेपी, आप और कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में मतदाताओं को कैश वितरित करने के उनके वादों पर दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। न्यायाधीश ने कहा कि ऐसा कृत्य भ्रष्ट आचरण में आता है। याचिका न्यायमूर्ति ढींगरा द्वारा दायर की गई थी जो सशक्त समाज संगठन के अध्यक्ष भी हैं। इसे दिल्ली विधान सभा चुनावों के मद्देनजर लाया गया था जो अब संपन्न हो गए हैं। चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील सुरुचि सूरी ने अदालत को बताया कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही अश्विनी कुमार उपाध्याय मामले में मुफ्त के मुद्दे पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा, 2023 के आदेश के संदर्भ में तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित करने की आवश्यकता है। इस पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश के वकील से कहा कि उन्हें शीर्ष अदालत का रुख करना चाहिए और वहां पक्षकार की तलाश करनी चाहिए।
*शंकर ठक्कर ने आगे कहा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई इस टिप्पणी का हम स्वागत करते हैं। वास्तव में सरकारों द्वारा इस तरह की मुफ्त की योजनाएं लागू कर देश की जनता को आलसी और खोखला बनाया जा रहा है। आज कई क्षेत्र में काम के लिए लोग उपलब्ध नहीं है और मुफ्त की योजनाओं के वजह से कई लोग दिनभर मोबाइल से खेलते रहते हैं इसलिए सरकार को करदाता संगठन और सरकार के प्रतिनिधि एवं सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की एक कमेटी गठित करनी चाहिए जो की करदाता की कड़ी मेहनत का पैसा यानी की राजस्व का इस्तेमाल किन-किन चीजों पर होना चाहिए यह तय करें।