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*अंतःकरण की सच्ची साधना से प्राप्त होती है आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति – बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*अंतःकरण की सच्ची साधना से प्राप्त होती है आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति – बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*जब आत्मा परेशान होती है तो शरीर को सुख नही मिलता है*

उज्जैन परम पूज्य परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है कि अमावस्या और पूर्णिमा के दिन नदी स्नान, देवी-देवताओं को भेंट चढ़ाना और जरूरतमंदों को भोजन कराना पुण्य कार्य माने जाते हैं। इन कार्यों से प्रभु का स्मरण होता है, धार्मिक आस्था जागृत होती है और सत्य, अहिंसा, परोपकार तथा सेवा जैसे सद्गुणों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है, जिससे गृहस्थ जीवन में सुख की अनुभूति होती है। प्राचीन समय में नदियों के किनारे महात्माओं के आश्रमों में प्रवचन हुआ करते थे। गृहस्थ लोग नियमित रूप से तीर्थ यात्रा और सतसंग में भाग लेते थे। वे स्नान के बाद प्रवचनों को सुनते थे। आज भी अच्छी भावना रखने से, देवी-देवताओं को याद करने से मन में अच्छी भावना बनती है। दान-पुण्य से थोड़ी शांति तो अवश्य मिलती है, लेकिन यह केवल शरीर को ही मिलती है, शरीर को चलाने वाली आत्मा को नहीं मिलती। जब आत्मा परेशान होती है तो शरीर को सुख नही मिलता है। अतः यह समझने की आवश्यकता है कि बाहरी पूजा से अधिक महत्वपूर्ण आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति है, जो अंतःकरण की सच्ची साधना से प्राप्त होती है।

*नदी में स्नान करने से क्या होता है?*

गंगा कहाँ से निकली? गंगोत्री से। और गंगोत्री कहाँ है? यह बहुत ऊँचे पहाड़ों पर स्थित है। अमावस्या और पूर्णिमा के दिन, जब सूर्य और चंद्रमा की किरणें नदी के जल पर पड़ती हैं, तो उसमें एक विशेष तत्व उत्पन्न होता है। जब गंगा पहाड़ों से उतरती है, तो वहाँ लगे वृक्षों और पौधों की जड़ी-बूटियाँ, पत्ते आदि इसके जल में समाहित हो जाते हैं। इसी तरह, सोना-चाँदी, लोहा-तांबा और दूध-घी भी नदी में बहकर आ जाते हैं। तो इस जल में स्नान करने से शरीर स्वस्थ रहता है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ बहकर आती हैं।

*सतसंग और प्रवचन में अंतर होता है।*

प्रवचन में क्या होता है? “पर+वचन” – दूसरे की बातों को बताया जाता है, कही-सुनी बातों को बताया जाता है। लेकिन जो सतसंग होता है, उसमें सत्य का संग करने वाले का सतसंग हुआ करता है। सत्य की जानकारी कराने वाले, सत्य के बारे में बताने वाले का जहाँ प्रवचन होता है, जहाँ सत्य से मेल कराने का रास्ता बताया जाता है, वास्तव में वही सतसंग हुआ करता है। सत्य किसको कहा गया? “ब्रह्म सत्य, जगत मिथ्या” किसको कहा गया? सत्य वह प्रभु है। बाकी यह दुनिया, यह संसार – यह सब झूठा है। यह सब क्षणिक है, कुछ समय के लिए है। सत्य वही है। अगर वह प्रभु मिल जाए तो दीन और दुनिया दोनों बन जाएं। तो पहले लोग सत्य का संग करते थे। उस समय लोग यह जानने के लिए महात्माओं के पास जाते थे कि भौतिक लाभ कैसे मिले और आध्यात्मिक लाभ कैसे मिले। तब उनका लोक और परलोक दोनों संवर जाते थे।

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