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*बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया – आत्मा कैसे परमात्मा के पास पहुंच सकती है*

*बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया – आत्मा कैसे परमात्मा के पास पहुंच सकती है*

*असली गुरु भक्ति क्या है?*

(उज्जैन)। सन्त बाबा उमाकात जी महाराज ने गुरु की सेवा के बारे में बताते हुए कहा कि हर कोई गुरु को खाना नहीं दे सकता, हर कोई गुरु के पैर नहीं दबा सकता। अगर चार लोग किसी के एक पैर पर दबाव डालें तो पैर का क्या हाल होगा? गुरु के आदेश का पालन ही असली गुरु भक्ति है। इसके अलावा सतसंग में आने से आपके शारीरिक कर्मों का नाश होता है। जो आर्थिक या मानसिक अपराध आपने किए हैं, उनकी भी सफाई होती है।

*पाप तीन प्रकार के होते हैं – मनसा, वाचा और कर्मणा*

मनसा पाप – जब मन में किसी को मारने या कष्ट देने की भावना उत्पन्न होती है तो यह मनसा पाप कहलाता है।
वाचा पाप – जब मुंह से किसी को गाली देते हैं या मुंह से बोल कर मरवा-कटवा देते हैं तो वाचा पाप लगता है।
कर्मणा पाप – यह तब होता है जब हाथ-पैर से या शारीरिक अंगों से पाप किया जाता है। जैसे अगर किसी को चोट पहुंचाई या हत्या की तो यह कर्मणा पाप कहलाता है।

*कलयुग में मनसा पाप की माफी हो सकती है*

कलयुग में मनसा पाप को माफ कर दिया जाता है लेकिन कर्मणा पाप को काटने में मेहनत लगती है। उदाहरण के तौर पर, अगर लकड़ी के अंदर कीड़ा पड़ा है और आप उसे अनजाने में जला देते हैं तो यह पाप है, लेकिन यह क्षमा योग्य होता है क्योंकि आपने जान-बूझकर नहीं किया। इसी तरह, घर की सफाई करते वक्त छोटे-छोटे कीड़े मर जाते हैं तो यह भी पाप लगता है लेकिन वह भी क्षमा योग्य होता है। जब आप किसी भूखे को भोजन खिलाते हैं, प्यासे को पानी पिलाते हैं या सतसंग की बातें लोगों को बताते हैं तो यह पाप नष्ट हो जाते हैं। लेकिन कर्मणा पाप को नष्ट करने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। इसीलिए, शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की सेवा करनी चाहिए जिससे कर्मणा और मनसा पाप दोनों कट जाएं। जब आप कर्महीन हो जाएंगे तो आपकी आत्मा परमात्मा के पास पहुंच जाएगी और जिस काम के लिए मनुष्य शरीर मिला है, वह पूरा हो जाएगा।

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