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*वक्त गुरु ही पूरी दुनिया को चला रहे हैं – सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*वक़्त के सन्त दुनिया से जाने के पहले अपनी पूरी शक्ति अपने आध्यात्मिक उत्तराधिकारी को पहले से ही स्थानांतरण (ट्रांसफर) करने लगते हैं*

*वक्त गुरु ही पूरी दुनिया को चला रहे हैं – सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*

*वक़्त के सन्त दुनिया से जाने के पहले अपनी पूरी शक्ति अपने आध्यात्मिक उत्तराधिकारी को पहले से ही स्थानांतरण (ट्रांसफर) करने लगते हैं*

बहराइच (उप्र.)निजधाम वासी बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के मनुष्य शरीर में मौजूदा वक़्त गुरु, उज्जैन वाले दुःखहर्ता सन्त उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेव यूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि
जो समरथ गुरु होते हैं उनके दो रूप होते हैं, अंदर का रूप अलग और बाहर का रूप अलग होता है। लेकिन हाड-मांस के शरीर को ही लोग गुरु समझ लेते हैं की यही गुरु हैं। गुरु तो एक शक्ति (पावर) होती है, यह शक्ति जिसको मिलती है, वो ही गुरु का काम कर सकता है। जो गुरु उस वक्त पर काम करने वाले रहते हैं, वह उस शक्ति को दुनिया संसार से जाने से पहले ही स्थानांतरण (ट्रांसफर) करने लगते हैं, अर्थात उस शक्ति को धीरे-धीरे देने लगते हैं और जाते समय उस शक्ति को पूरी तरह से देकर चले जाते हैं।

*गुरु के दो रूप होते हैं*

रानी इंदुमती ने अंतर में जब गुरु के रूप का जलवा देखा की कबीर साहब ही सब कुछ कर रहे हैं, तब वह बोली “आपने हमको मृत्यु लोक में ही बता दिया होता कि मैं ही सब कुछ हूं तो मुझको इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ती?” तब सन्त कबीर साहब जी ने कहा कि मैं तुमको बता देता तो तुमको जल्दी विश्वास नहीं होता, तुम कहती कि मनुष्य शरीर में इतनी शक्ति कहां से आ सकती है? इसलिए तुमको मैंने रास्ता बता करके, ऊपर स्थानों में ले जा करके यह जलवा दिखाया, तब तुमको विश्वास हो रहा है। बोल तेरी मदद मैंने किया की नहीं किया? तब रानी इंदुमती ने कबीर साहब से कहा… कदम-कदम पर आपने मेरी मदद किया, आप ही मुझे कीचड़ से निकाल करके यहां पर लाए, मेरा यहां पर पहुंच पाना बहुत ही मुश्किल था, लेकिन आपके आदेश का पालन मैंने किया, तब आपने दया किया। आपकी एक बात मैंने पकड़ ली, हमेशा आपको सामने रखा।

*गुरु भक्ति करने से ही यह मोह ढीला पड़ेगा*

संदीपनी ऋषि ने भी गुरु के आदेश का पालन किया था, गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति होती है। गुरु का आदेश चाहे रैन में हो, चाहे बैन में हो और चाहे सैन में हो, उसका पालन करना चाहिए।
गुरु माथे पर राखिए, चलिए आज्ञा माहिं।
कह कबीर ता दास का, तीन लोक भय नाहिं।।
आप लोग जो बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के शिष्य हो, इस बात को खूब ठीक से समझ लीजिए कि गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति है।

गुरु भक्ति पहले करें, पीछे और उपाय।
बिन गुरु भक्ति मोह जग के, कभी न काटो जाय।।

यह जो मोह है, चाहे धन का हो, चाहे शरीर का, चाहे गाड़ी-घोड़ा, मान-सम्मान, बाल-बच्चे, चाहे जानवर का मोह हो, यह सब बिना गुरु भक्ति के ढीला नहीं पड सकता है। यह तो आपको और जकड़ता चला जाएगा, इसलिए गुरु भक्ति करना चाहिए, गुरु के आदेश का पालन करना चाहिए,
“जो गुरु कहें करो तुम सोई, “

*गुरु आदेश का पूरा पालन करने पर ही, गुरु की दया का अनुभव किया जा सकता है*

अनेक लोगों ने गुरु आदेश का पालन किया, हमेशा उनको याद रखा, मस्तक से उनको उतारा नहीं तब जा कर के दया का अनुभव किया। उनकी वही दया खींच करके ले जाती है और अंतर में अपने गुरु का जलवा देखता है की यही सब कुछ कर रहे हैं, यही दुनिया को चला रहे हैं, सबको खिला रहे हैं, सारी व्यवस्था यही कर रहे हैं।
सन्त नानक साहब जी ने जब अपने गुरु को देखा तो कहा बहुत बड़ा जलवा है इनका…”वाहेगुरु, वाहेगुरु, वाहेगुरु” तब वाहेगुरु नाम में ताकत आ गई।

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