*बहराइच में सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया मां के पेट में उस प्रभु का दर्शन होता रहता था, जिसे अपने सभी जीवों की फिक्र रहती है
*अगर समय रहते उपाय नहीं किया, तो आखिरी वक्त पर मरते समय बहुत तकलीफ होती है - परम् सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*
*बहराइच में सन्त बाबा उमाकान्त जी ने बताया मां के पेट में उस प्रभु का दर्शन होता रहता था, जिसे अपने सभी जीवों की फिक्र रहती है*
*अगर समय रहते उपाय नहीं किया, तो आखिरी वक्त पर मरते समय बहुत तकलीफ होती है – परम् सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज*
(बहराइच)। विश्व विख्यात निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बहराइच में दिए सतसंग संदेश में बताया, अगर आप ये समझ पाए कि ये मनुष्य शरीर किस काम के लिए मिला है, किस काम के लिए प्रभु ने हमको दिया है । और मनुष्य पशु-पक्षियों की भांति खाने-पीने, मल-मूत्र त्यागने, बच्चा पैदा करने में ही समय को गंवा बैठे तो ये जिंदगी रोते-रोते ही बीत जाती है और एक दिन दुनिया संसार से सभी को जाना होता है।
*अगर सतसंग नहीं मिला…*
यदि सन्त नहीं मिले, कोई आपको बताने वाला नहीं मिला, कि भाई-भाई का प्रेम किस तरह का होता है, भाई-भाई के खून का प्यासा नहीं होना चाहिए। पत्नी का पति के प्रति क्या फर्ज होता है, तो यही गृहस्थ आश्रम नर्क जैसा हो जाता है। लक्ष्मण अपने भाई राम के लिए, जंगल चले गए। माता सीता अपने पति को समर्पित हो उनके साथ जंगल में गईं। अर्थात जानकारी के अभाव में मानव एकदम से अपने कर्तव्यों और भावनाओं को भूलता चला जा रहा है।
*आखिरी वक्त पर क्या होता है?*
जिंदगी के हर पड़ाव पर आदमी का रोना-धोना लगा ही रहता है। जब बच्चा पैदा हुआ तब रोया, जब स्कूल जाने को हुआ, जब स्कूल में मास्टर ने मारा, जब अच्छे अंक नहीं लाया, जब युवावस्था में नौकरी नहीं मिली, शादी नहीं हुई तब रोया, शादी हो गई तब भी रोते हैं। बाल-बच्चे हुए तब उनके पालन पोषण में समस्याएं आई तब रोए, तब उन्होंने बड़े होकर आपको सहारा नहीं दिया तब रोए। अर्थात अंत समय तक विभिन्न प्रकार की समस्याओं से घिरा मनुष्य अन्त में रोता-रोता ही इस दुनिया संसार को छोड़ कर चला जाता है। जिस दुनिया संसार की सांसारिक वस्तुओं में खुशी ढूंढता रहा, उसे अपना-अपना कहता रहा, वे नाते रिश्तेदार अंत समय में मरते हुए आदमी के पास निष्क्रिय रूप में खड़े रहते हैं। कितना भी बलवान मनुष्य हो, संपत्ति वाला, सत्ता वाला हो लेकिन मरते हुए आदमी की तकलीफ को दूर नहीं कर पाते हैं। जो जीव अधिक पापी, कुकर्मी होते हैं उनको तो यमदूत मार-मार कर उनके शरीर से जीवात्मा की निकालते हैं।
*जन्म के समय बच्चे रोते क्यों हैं?*
जन्मने के दौरान बच्चा रोता है, क्योंकि उसे तकलीफ होती है, बोलकर बता भी नहीं सकता। जिस प्रभु परमात्मा का दर्शन वो मां के पेट में कर रहा था, उसका दर्शन बाहर आते ही एकदम से बंद हो जाता है। तो बच्चा अपनी ही भावात्मक आवाज में “कहां-कहां” चिल्लाता है। दूसरे कारण से जब बच्चा अपनी मां के पेट से बाहर निकलता है तो ये बाहर का तापमान और हवा उसके शरीर पर ऐसे चुभती है जैसे हजारों बिच्छू एक साथ डंक मार रहे हों। सब बच्चे रोते हुए ही पैदा होते हैं। यदि कोई बच्चा बिना आवाज किए जन्म लेता है तो उसका जीवन ज्यादा समय के लिए नहीं होता है।
*मौत और ईश्वर को लोग भूले हुए हैं*
पहले के समय में बराबर लोग सतसंग सुनने की आदत डाले हुए थे और जगह-जगह पर कार्यक्रम होते भी रहते थे। आज लोगों की आदत छूट गई, जिसकी वजह से हर चीज को लेकर आदमी में अज्ञानता बढ़ गई। इंसान रोज के कामों में इतना डूबा रहता है कि उसको प्रभु, परमात्मा की याद ही नहीं आती। *मौत और ईश्वर* जो असल मायनों में सत्य है – लोग उसी को भूल रहे हैं।